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India Pakistan Border Terrorism: ज़मीन के नीचे से आतंक का साम्राज्य! ऐसे सुरंगों के ज़रिए भारत में घुसपैठ करता है पाकिस्तान

News Desk
Last updated: 2025/05/03 at 2:48 अपराह्न
News Desk
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15 Min Read
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India Pakistan Border Terrorism: भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष समय-समय पर अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होती रही हैं, लेकिन हाल के वर्षों में आतंकियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय सीमा के नीचे सुरंगों (टनल्स) का निर्माण कर घुसपैठ करना एक नई, खतरनाक और बेहद चिंताजनक रणनीति के रूप में सामने आया है। विशेषकर जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में मिली सुरंगें इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि अब आतंकवादी संगठन पारंपरिक रास्तों को छोड़कर आधुनिक तकनीक और गुप्त रास्तों का प्रयोग कर रहे हैं, ताकि भारतीय सुरक्षा बलों की निगाहों से बचकर घुसपैठ की जा सके। यह सिर्फ सीमा सुरक्षा पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संप्रभुता और नागरिक जीवन पर भी एक गंभीर हमला है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि आतंकवादी सुरंगों का निर्माण कैसे करते हैं, उनका उपयोग किस उद्देश्य से किया जाता है, और भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ इस अदृश्य खतरे से कैसे निपट रही हैं।

Contents
India Pakistan Border Terrorism: घुसपैठ के पारंपरिक रास्ते और उनकी सीमाएँघातक सुरंगों का निर्माणनिर्माण में लगने वाला समय और रणनीतिसुरंगों का उद्देश्यसुरंगों के उपयोग से जुड़े खतरेचुनौतियाँ और सीमाएँसमाधान और आगे की रणनीति
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India Pakistan Border Terrorism: घुसपैठ के पारंपरिक रास्ते और उनकी सीमाएँ

पिछले कुछ दशकों में भारत में पाकिस्तान(Pakistan) समर्थित आतंकवाद ने गहरी जड़ें जमाने की कोशिश की है। पहले आतंकवादी नियंत्रण रेखा (LoC) और अंतरराष्ट्रीय सीमा (IB) के ज़रिए घुसपैठ किया करते थे। कई बार बर्फबारी और कठिन भू-भाग का फायदा उठाकर वे LoC को पार कर लेते थे। (India Pakistan Border Terrorism) लेकिन भारतीय सेना और BSF (सीमा सुरक्षा बल) की सख्त निगरानी, हाई-टेक उपकरणों की तैनाती और मजबूत गश्ती तंत्र के कारण ये रास्ते अब पहले जितने प्रभावशाली नहीं रहे। इसलिए आतंकी संगठनों ने एक नया रास्ता खोजा टनल्स के ज़रिए घुसपैठ।

पिछले दो दशकों के दौरान भारत ने पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों की घुसपैठ के लिए बनाई गई लगभग 22 से 25 सुरंगों(Tunnels)का पता लगाया है। ये सुरंगें मुख्य रूप से जम्मू क्षेत्र में, विशेष रूप से सांबा और कठुआ जिलों में पाई गई हैं। इन सुरंगों का निर्माण पाकिस्तान की सीमा से भारत की सीमा में घुसपैठ के उद्देश्य से किया गया था।

अगस्त 2020 में जम्मू के सांबा सेक्टर में एक सुरंग(Tunel) मिली थी, जिसकी लंबाई लगभग 150 से 170 मीटर थी। यह सुरंग पाकिस्तान की तरफ से खुदी हुई थी और इसका उपयोग आतंकियों द्वारा भारत में घुसपैठ के लिए किया जाता था। (India Pakistan Border Terrorism) इसके बाद, मई 2021 में भी इसी क्षेत्र में एक नई सुरंग का पता चला, जो हाल ही में बनाई गई थी। इस सुरंग के अंदर ऑक्सीजन पाइप भी पाए गए, जिससे स्पष्ट होता है कि इसे आतंकवादियों की सुविधाजनक आवाजाही और सांस लेने के लिए तकनीकी रूप से तैयार किया गया था।

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इसके अतिरिक्त, नवंबर 2022 में कठुआ जिले के हीरानगर सेक्टर में एक और सुरंग का पता चला, जिसकी लंबाई लगभग 150 मीटर थी। यह सुरंग पाकिस्तान के शकरगढ़ क्षेत्र से शुरू होकर भारत में प्रवेश करती थी और इसका प्रयोग भी आतंकियों की घुसपैठ के लिए किया जा रहा था। इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान की ओर से भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए सीमा पार सुरंगों का एक संगठित नेटवर्क तैयार किया गया है, जिससे भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर खतरा बना हुआ है।

सभी सुरंगों में पाकिस्तानी सेना(Pakistani Army) और ISI की संलिप्तता के प्रमाण मिले हैं, जैसे कि पाकिस्तानी मार्किंग वाले सैंडबैग, खुदाई के उपकरण, और सुरंगों का सीधा पाकिस्तान के लॉन्च पैड्स से जुड़ा होना। सुरंगों की इंजीनियरिंग और छिपाने की तकनीक से भी यह स्पष्ट होता है कि यह काम पेशेवर स्तर पर और पाकिस्तानी एजेंसियों की मदद से किया गया है।

पाकिस्तान द्वारा सीमा पार सुरंगों का निर्माण एक गहरी और सुनियोजित साजिश का हिस्सा रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में आतंकवादियों की सुरक्षित घुसपैठ सुनिश्चित करना है। सुरक्षा एजेंसियों और खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, इन सुरंगों का इस्तेमाल केवल आतंकियों को भेजने के लिए ही नहीं, बल्कि हथियार, गोला-बारूद, नकली भारतीय मुद्रा और ड्रग्स जैसी अवैध सामग्री की तस्करी के लिए भी किया गया है। (India Pakistan Border Terrorism) इन सुरंगों से कई बार हथियारों के पैकेट और नशीले पदार्थ बरामद हुए हैं, जो इस बात को स्पष्ट करते हैं कि ये रास्ते सप्लाई चैन के रूप में भी उपयोग में लाए जाते हैं। इतना ही नहीं, उरी, पठानकोट, नगरोटा और पुलवामा जैसे बड़े फिदायीन हमलों में भी सुरंगों के माध्यम से आतंकियों की भारत में घुसपैठ की पुष्टि हुई है। जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी 2016 के नगरोटा हमले और 2019 के पुलवामा हमले में इन्हीं सुरंगों के जरिए भारत में दाखिल हुए थे। यह पूरी योजना भारत की आंतरिक सुरक्षा को कमजोर करने और अस्थिरता फैलाने की एक गहरी साजिश का हिस्सा है, जिसमें बार-बार पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी ISI की भूमिका सामने आती रही है।

घातक सुरंगों का निर्माण

अधिकांश सुरंगें 20 से 30 फीट (6 से 10 मीटर) गहराई में और 150 से 500 मीटर लंबी पाई गई हैं। इनका मार्ग इस तरह से तैयार किया जाता है कि वे भारतीय सीमा के निकट BSF बंकरों के आसपास निकलें, जिससे घुसपैठ सीधे प्रभावी हो सके। (India Pakistan Border Terrorism) खुदाई के लिए छोटे हाथ के औजारों, खुदाई मशीनों, वेंटिलेशन पाइप्स और प्लास्टिक लाइनिंग का इस्तेमाल किया जाता है। कई सुरंगों में ऑक्सीजन सप्लाई सिस्टम और बिजली के तार भी मिले हैं, जो इस बात का संकेत देते हैं कि इन सुरंगों को पेशेवर तरीके से और तकनीकी सहायता लेकर बनाया गया है।

निर्माण में लगने वाला समय और रणनीति

एक सुरंग को पूरा करने में कई हफ्तों से लेकर महीनों तक का समय लग सकता है। ये सुरंगें इतनी मजबूत और चौड़ी होती हैं कि एक बार में कई आतंकवादी इनमें से सुरक्षित रूप से भारत में प्रवेश कर सकें। निर्माण के दौरान सतह के नीचे वेंटिलेशन पाइप डाले जाते हैं ताकि अंदर हवा का प्रवाह बना रहे और घुसपैठियों को दम घुटने जैसी समस्याओं का सामना न करना पड़े।

सुरंगों का उद्देश्य

इन सुरंगों का प्रमुख उद्देश्य आतंकवादियों की घुसपैठ को सुरक्षित और गोपनीय तरीके से अंजाम देना है। इसके साथ ही, इनका इस्तेमाल हथियारों की आपूर्ति, ड्रग्स तस्करी और नकली भारतीय मुद्रा भेजने जैसे उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। (India Pakistan Border Terrorism) सुरक्षा एजेंसियों ने कई बार सुरंगों से हथियार, नकली नोट और मादक पदार्थ बरामद किए हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ये सुरंगें केवल आतंकवाद ही नहीं, बल्कि भारत में अस्थिरता फैलाने के व्यापक प्रयास का हिस्सा हैं।

सुरंगों के उपयोग से जुड़े खतरे

पाकिस्तान द्वारा खोदी गई सुरंगों का उद्देश्य न केवल भारतीय सीमा में आतंकियों की घुसपैठ कराना है, बल्कि सुरक्षा तंत्र को चकमा देना भी है। नियंत्रण रेखा (LoC) पर भारतीय सेना और BSF की सतह निगरानी को धोखा देने के लिए ये सुरंगें इतनी गहराई में बनाई जाती हैं कि उन्हें पारंपरिक निगरानी तकनीकों से पकड़ना मुश्किल हो जाता है। इससे आतंकवादी बिना किसी सीधी भिड़ंत या टकराव के भारत में प्रवेश कर सकते हैं। हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि पाकिस्तान ने LoC पार भूमिगत सुरंगें खोदकर आतंकियों की सुरक्षित घुसपैठ सुनिश्चित की है। इन सुरंगों का इस्तेमाल केवल घुसपैठ के लिए नहीं, बल्कि हथियारों, विस्फोटकों, ड्रग्स और अन्य अवैध सामग्रियों की तस्करी के लिए भी किया जाता है। सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसे कई मामलों का पर्दाफाश किया है, जिनमें गुप्त सुरंगों का प्रयोग हुआ। इसके अतिरिक्त, कई बार भारतीय सीमा में इन सुरंगों के छोर पर स्थानीय गुर्गों या पाकिस्तानी एजेंटों द्वारा आतंकियों की सहायता की जाती है, जिससे वे सुरक्षित ठिकानों तक पहुँच सकें। रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि पाकिस्तान ने सीमा के पास अपने पूर्व सैनिकों को तैनात कर रखा है, जो सुरंग निर्माण और संचालन की देखरेख करते हैं तथा भारतीय पक्ष में सक्रिय स्थानीय नेटवर्क को नियंत्रित करते हैं।
पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी ISI की निगरानी में भारत-पाक सीमा पर सुरंगों का निर्माण एक सुनियोजित और तकनीकी रूप से विकसित साजिश का हिस्सा है। (India Pakistan Border Terrorism) रिपोर्टों के अनुसार, इन सुरंगों की खुदाई आमतौर पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) या पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाकों से शुरू होती है और ये जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों तक पहुँचती हैं। खुदाई का कार्य गुप्त स्थानों से या रात के अंधेरे में किया जाता है ताकि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी से बचा जा सके।

भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तान द्वारा की जा रही सुरंगों की घुसपैठ को रोकने के लिए आधुनिक तकनीकों और जमीनी खुफिया तंत्र को सक्रिय रूप से तैनात किया है। जमीन के नीचे की गतिविधियों का पता लगाने के लिए सीमा क्षेत्रों में ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (GPR) और अन्य भूमिगत सेंसर लगाए गए हैं, जो खुदाई या सुरंग निर्माण की शुरुआती चेतावनी देने में सक्षम हैं। इसके साथ ही संवेदनशील क्षेत्रों में भूकंपीय सेंसर और अन्य सुरंग डिटेक्शन सिस्टम भी लगाए गए हैं, जो ज़मीन में हलचल का तुरंत संकेत देते हैं। हवाई निगरानी के लिए ड्रोन और उन्नत कैमरों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे संदिग्ध खुदाई या सुरंग के मुहानों की पहचान की जा सके। कई बार ड्रोन कैमरों से मिली फुटेज ने सुरक्षाबलों को समय रहते कार्रवाई का मौका दिया है। इन तकनीकी उपायों के साथ-साथ, सुरक्षा एजेंसियों ने स्थानीय ग्रामीणों और सीमावर्ती क्षेत्र के निवासियों से खुफिया जानकारी जुटाने के लिए एक मजबूत नेटवर्क भी खड़ा किया है। ये स्थानीय निवासी किसी भी असामान्य आवाज़, खुदाई या जमीन में कंपन जैसी गतिविधियों पर नज़र रखते हैं और संदिग्ध घटनाओं की सूचना तुरंत सुरक्षा बलों तक पहुंचाते हैं। यह समन्वित तकनीकी और मानवीय निगरानी व्यवस्था सुरंगों के जरिए हो रही घुसपैठ को रोकने में अत्यंत सहायक सिद्ध हो रही है।

चुनौतियाँ और सीमाएँ

भारत-पाकिस्तान सीमा की लंबाई लगभग 3,323 से 3,333 किलोमीटर है, जो इसे दुनिया की सबसे चुनौतीपूर्ण सीमाओं में से एक बनाती है। इतनी विस्तृत सीमा रेखा की हर इंच पर निरंतर और प्रभावी निगरानी कर पाना व्यावहारिक रूप से बेहद कठिन है, क्योंकि संसाधनों और तकनीकी उपकरणों की अपनी सीमाएं होती हैं। भले ही भारत ने ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (GPR), ड्रोन, थर्मल कैमरे, रडार और सिस्मिक सेंसर जैसे अत्याधुनिक निगरानी उपकरण सीमावर्ती संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात किए हों, लेकिन इतनी लंबी सीमा पर इन सभी संसाधनों को हर जगह तैनात करना फिलहाल संभव नहीं है। इसके चलते कई ऐसे इलाके हैं जो निगरानी की दृष्टि से कमजोर बने हुए हैं और घुसपैठियों के लिए आसान रास्ते बन जाते हैं। विशेष रूप से रात के समय सुरंगों का उपयोग कर घुसपैठ करना आतंकियों की आम रणनीति रही है, क्योंकि अंधेरे में दृश्यता कम होने के कारण सुरक्षा बलों को सतर्कता बनाए रखना और संदिग्ध गतिविधियों का पता लगाना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। यही कारण है कि सुरंगों के ज़रिए होने वाली गतिविधियाँ अक्सर रात के अंधेरे में ही अंजाम दी जाती हैं।

समाधान और आगे की रणनीति

भारत ने सीमा सुरक्षा को आधुनिक तकनीकों से सुसज्जित करने के उद्देश्य से ‘स्मार्ट फेंसिंग प्रोजेक्ट’ की शुरुआत की है, जो संवेदनशील क्षेत्रों में निगरानी और घुसपैठ नियंत्रण को अत्यधिक प्रभावी बनाता है। इस प्रणाली में सेंसर, कैमरे, थर्मल इमेजर्स, लेज़र-आधारित अलार्म, ग्राउंड सर्विलांस रडार और फाइबर-ऑप्टिक सेंसर जैसे अत्याधुनिक उपकरणों के साथ एकीकृत कमांड और कंट्रोल सिस्टम शामिल हैं, जो वास्तविक समय में डेटा की निगरानी और त्वरित अलर्टिंग की सुविधा प्रदान करते हैं। यह तकनीक वर्तमान में पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार सीमाओं पर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू की गई है और इसका विस्तार जारी है। इसके अतिरिक्त, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित निगरानी सॉफ्टवेयर सेंसरों और कैमरों से प्राप्त डेटा का विश्लेषण कर संदिग्ध गतिविधियों की पहचान करता है, जिससे सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया अधिक सटीक और तेज़ होती है। साथ ही, सरकार ने सीमावर्ती गांवों को फर्स्ट लाइन ऑफ़ डिफेंस (first line of defence) मानते हुए वहां के स्थानीय निवासियों को निगरानी में सहभागी बनाया है। ये नागरिक किसी भी खुदाई, संदिग्ध हलचल या घुसपैठ की सूचना समय रहते सुरक्षा एजेंसियों को देकर सीमा सुरक्षा नेटवर्क को और अधिक मजबूत बना रहे हैं।

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