Japan China Conflict: सागर की लहरें शांत हैं, लेकिन उनकी गहराई में एक तूफान पनप रहा है एक ऐसा तूफान जो कूटनीति की सतह को चीरते हुए सैन्य टकराव की आशंका को जन्म दे रहा है। (Japan China Conflict) जापान के कोमात्सु एयरबेस पर जब अमेरिकी मूल के अत्याधुनिक एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट्स की गर्जना सुनाई दी, तो वो सिर्फ एक सैन्य अभ्यास नहीं था वो था एक स्पष्ट संदेश, सीधा बीजिंग की दिशा में। (Japan China Conflict) दशकों से दबे चीन-जापान तनाव की धरती अब गर्म होती दिख रही है और विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि एशिया एक नए प्रकार के “शीत युद्ध” की ओर बढ़ रहा है, जहां हथियारों की चमक, निगरानी विमानों की नजर और युद्धक रणनीति की चालें एक बार फिर वैश्विक चिंता का केंद्र बनने जा रही हैं। (Japan China Conflict) यह कोई साधारण सैन्य तैनाती नहीं है। यह एक सोची-समझी रणनीति है—एक ऐसा कदम जो जापान की बदलती विदेश नीति, उसके आत्मरक्षा के दायरे के विस्तार और चीन के आक्रामक भू-रणनीतिक कदमों के जवाब में सामने आया है।

Japan China Conflict: चीन को सीधी चुनौती: कोमात्सु पर ‘अदृश्य’ लड़ाकू विमानों की तैनाती
जापान ने हाल ही में अपने प्रमुख होन्शू द्वीप पर स्थित कोमात्सु एयरबेस पर अमेरिकी तकनीक से लैस F-35A स्टील्थ फाइटर जेट्स की तैनाती कर दी है। यह वही एयरबेस है जो अब तक जापान की परंपरागत वायु रक्षा का हिस्सा था, लेकिन अब इसे एक “रणनीतिक हमलावर बेस” में तब्दील किया जा रहा है। इस तैनाती के साथ जापान ने साफ कर दिया है कि वह अब केवल ‘डिफेंस’ के दायरे में नहीं रहेगा, बल्कि चीन की किसी भी आक्रामकता का सामना करने के लिए ‘ऑफेंसिव स्ट्रैटेजी’ अपनाने को भी तैयार है। (Japan China Conflict) कोमात्सु एयरबेस पर पहुंचने वाले तीन एफ-35ए विमान टेक्नोलॉजी रिफ्रेश-3 (TR-3) कॉन्फ़िगरेशन में हैं, जो उन्हें ‘अदृश्य हत्यारा’ बनाता है। ये फाइटर जेट्स चीन की रडार प्रणाली को भेदने और उसकी सामरिक गतिविधियों पर सटीक निशाना साधने में सक्षम हैं। अमेरिका के एफ-35 जॉइंट प्रोग्राम ऑफिस (JPO) के अनुसार, कोमात्सु अब जापान के उस समुद्री तट पर एकमात्र एयरबेस है, जो सीधे पूर्वी चीन सागर की ओर देखता है जहां सेनकाकू द्वीपों को लेकर जापान और चीन के बीच गहराता तनाव पहले से मौजूद है।
सेनकाकू द्वीप: विवाद की जड़ या युद्ध की वजह?
पूर्वी सागर में स्थित सेनकाकू द्वीप समूह या जैसा कि चीन उन्हें “दियाओयू” कहता है—इस पूरे विवाद का केंद्रीय बिंदु हैं। इन निर्जन द्वीपों में न तो कोई आबादी है और न ही कोई स्थायी निर्माण, लेकिन इनके आस-पास का समुद्री क्षेत्र प्राकृतिक गैस, तेल और मछली से भरपूर है। (Japan China Conflict) यही कारण है कि दोनों देश यहां अपनी-अपनी संप्रभुता का दावा करते हैं। जापान का कहना है कि 1895 से यह द्वीप उसके अधिकार में हैं, जबकि चीन का आरोप है कि जापान ने इन्हें जबरन कब्जा किया। 1970 के दशक में जब इस क्षेत्र में तेल और गैस संसाधनों की मौजूदगी का खुलासा हुआ, तभी से इस पर अधिकार को लेकर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक टकराव शुरू हुआ, जो अब सैन्य तैयारी में बदल चुका है। Japan China Conflict) बीते कुछ वर्षों में चीन ने इस क्षेत्र में कोस्ट गार्ड और लड़ाकू विमानों की गश्त बढ़ा दी है और यहां तक कि इसे एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन (ADIZ) घोषित कर दिया है। जवाब में जापान ने अमेरिकी मदद से अपने नौसैनिक और वायुसेना संसाधनों को पूर्वी तट पर तैनात करना शुरू कर दिया।
‘एशियाई शीत युद्ध’ की दस्तक?
एफ-35 की तैनाती सिर्फ जापान की आत्मरक्षा नीति में बदलाव का संकेत नहीं है, बल्कि यह उस बड़े रणनीतिक खेल का हिस्सा है जो अब अमेरिका, जापान और चीन के बीच त्रिकोणीय शक्ति संघर्ष के रूप में सामने आ रहा है। अमेरिका लंबे समय से जापान का सामरिक भागीदार रहा है और उसने साफ कर दिया है कि सेनकाकू द्वीपों पर किसी भी हमले की स्थिति में वह जापान की रक्षा करेगा। (Japan China Conflict) यही वजह है कि अब चीन इस तैनाती को सिर्फ जापान की चाल नहीं, बल्कि अमेरिका-जापान गठजोड़ द्वारा अपनी घेरेबंदी के रूप में देख रहा है। चीन की सरकारी मीडिया ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे “उकसावे वाला कदम” बताया है। विश्लेषकों का मानना है कि यह तैनाती भविष्य में दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में तनाव को और अधिक भड़का सकती है। इस बीच, जापान भी अब अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी कर रहा है, और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2027 तक जापान का रक्षा खर्च अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2% पार कर जाएगा—जो युद्धोत्तर जापान की सबसे बड़ी रक्षा उन्नति होगी।
- Advertisement -
कूटनीति की जगह ले रही है सैन्य तैयारी?
जहां एक ओर संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति की बातें हो रही हैं, वहीं जापान और चीन के बीच सीमा रेखाओं पर अब टैंकों और फाइटर जेट्स की आवाजाही आम होती जा रही है। (Japan China Conflict) यह संकेत है उस बदलती एशिया की, जहां कूटनीति अब बैकफुट पर है और सैन्य सशक्तिकरण फ्रंटफुट पर।एफ-35 जैसे फाइटर विमानों की तैनाती से न केवल जापान की वायु क्षमता बढ़ी है, बल्कि इससे यह भी साफ हो गया है कि जापान अब ‘शांति के लिए तैयार सेना’ से एक ‘रणनीतिक हमलावर’ राष्ट्र में तब्दील हो रहा है। और यह बदलाव चीन को सीधे चुनौती देने जैसा है।
क्या यह टकराव टल सकता है?
फिलहाल युद्ध की घोषणा तो नहीं हुई है, लेकिन सैन्य तैयारियों की इस दौड़ ने यह साफ कर दिया है कि एशिया अब शीत युद्ध के एक नए युग में प्रवेश कर चुका है, जहां हर देश अपनी सैन्य स्थिति को मजबूत करने में जुटा है। जापान की एफ-35 तैनाती इस युग की शुरुआत का प्रतीक बनती जा रही है। (Japan China Conflict) विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर आने वाले समय में कूटनीतिक चैनल सक्रिय नहीं किए गए, तो सेनकाकू की चट्टानों के इर्द-गिर्द मंडराते फाइटर जेट्स कभी भी एक बड़ी चिंगारी का कारण बन सकते हैं—और वो चिंगारी पूरे एशिया को जला सकती है।
जापान की नई सैन्य नीति, चीन की बेचैनी और एशिया का भविष्य
कोमात्सु एयरबेस पर एफ-35 की तैनाती कोई सामान्य निर्णय नहीं था। यह जापान की उस नई सुरक्षा नीति का हिस्सा है जिसमें अब खतरे को टालने की बजाय उसका सामना करने की तैयारी है। जापान ने चीन को एक अप्रत्यक्ष परंतु स्पष्ट चेतावनी दी है—”अगर तुम आगे बढ़े, तो हम पीछे नहीं हटेंगे। (Japan China Conflict) ” अब यह देखना होगा कि बीजिंग इस सैन्य चेतावनी का क्या जवाब देता है—क्या वह पीछे हटेगा, कूटनीति की राह चुनेगा या पूर्वी सागर में अपने लड़ाकू जहाजों की संख्या और बढ़ाकर इस ‘शीत युद्ध’ को और गहरा करेगा। एक बात तो तय है एशिया अब स्थिर नहीं है, वह उबाल पर है और जब शांति की चादर इतनी पतली हो जाए कि उसके नीचे मिसाइलें साफ नजर आने लगें तो इतिहास सिखाता है कि कुछ बड़ा घट सकता है।