Ebrahim Raisi: पर्शिया से बना ईरान और एक लिबरल देश से बन गया शिया इस्लामिक मुल्क. साल 1979 से पहले का ईरान ऐसा नहीं था, जैसा आज नजर आता है. जहां हिजाब न पहनने पर भी सजा तक दे दी जाती है, यह मुल्क कभी पश्चिमी देशों की तरह बोल्ड मुल्क था. एक लिबरल से इस्लामिक मुल्क बनने का ईरान का जो इतिहास है, वह उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से जुड़ा है.
साल 1979 में रुहुल्लाह खुमैनी को देश का पहला सुप्रीम लीडर बनाया गया और उसके बाद यह देश शिया मुल्क में बदलता चला गया. रुहुल्लाह खुमैनी की बचपन से ही इस्लाम में काफी दिलचस्पी थी और शिया संप्रदाय के प्रति बेहद लगाव भी था. यह सब उन्हें विरासत में अपने दादा सैय्यद अहमद मुसावी हिंदी से मिला था. (Ebrahim Raisi) अहमद हिंदी एक शिया मौलवी थे, जिनका ईरान के इतिहास में अहम रोल है. अहमद हिंदी भारत से ईरान आए थे. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बराबंकी के पास किंतूर में हुआ था. अगर खुमैनी के दादा भारत वापस लौट जाते तो शायद आज ईरान जैसा है वैसा नहीं होता.
रुहुल्लाह खुमैनी ने कभी अपने दादा को नहीं देखा, लेकिन अहमद हिंदी की इस्लामिक शिक्षाओं का परिवार पर काफी असर था और खुमैनी भी बचपन से उसी माहौल में रहे. (Ebrahim Raisi) खुमैनी ने अपने दादा और उनकी बातें परिवार के लोगों से ही सुनीं.
Ebrahim Raisi: खुमैनी के दादा क्यों भारत से ईरान आए?
सैय्यद खुमैनी साल 1830 में ईरान आए. उस वक्त हिंदुस्तान में मुगल हुकूमत खत्म हो रही थी ब्रिटिश अपना कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे थे. अहमद हिंदी उन मौलवियों में से थे, जो इस्लामी पुनरुद्धार विचारधारा से प्रेरित थे और उन्हें लगता था कि इस्लाम को समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त करने की आवश्यकता है. अपने इस विश्वास को आगे बढ़ाने के लिए वह इराक से होते हुए ईरान पहुंचे. उस वक्त ईरान को पर्शिया के नाम से जाना जाता था. (Ebrahim Raisi) हालांकि, इससे पहले चार साल वह इराक में रहे. इराक के नजफ में अली का मकबरा है और मकबरे की तीर्थ यात्रा के लिए ही उन्होंने भारत छोड़ा था. अहमद हिंदी के पिता दीन अली शाह 18वीं शताब्दी में ईरान से ही भारत आए थे.
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चार साल बाद वह ईरान के खुमेइन शहर आए. यहां एक घर खरीदा और अपने परिवार के साथ रहने लगे. पत्रकार बकर मुईन की किताब में इसका जिक्र करते हुए बताया गया कि खुमेइन में अहमद हिंदी ने तीन शादियां कीं और उनके पांच बच्चे हुए. उनके एक बेटे का नाम मुस्तफा था और रुहुल्लाह खुमैनी उन्हीं के बेटे थे.
खुमैनी के दादा नाम में हिंदी क्यों लगाते थे?
रुहुल्लाह खुमैनी के दादा का पूरा नाम सैय्यद अहमद मुसावी हिंदी था. साल 1869 में उनकी मृत्यु हो गई और उन्होंने पूरी जिंदगी अपने नाम के साथ हिंदी को जोड़े रखा, जो उन्हें भारत में बिताई जिंदगी और समय की याद दिलाता था. (Ebrahim Raisi) मृत्यु के बाद उन्हें करबला में दफनाया गया था. बकर मुईन के अनुसार भारत के साथ अपना जुड़ाव दिखाने के लिए वह हिंदी शब्द को उपनाम के तौर पर लगता थे.
साल1920 से 1979 के इस्लामिक रेवॉल्यूशन से पहले तक ईरान में पहलवी वंश का राज था. इस दौरान, देश काफी लिबरल था और यहां के शासक मोहम्मद रेजा पहलवी पश्चिमी सभ्यता के पक्षधर थे. (Ebrahim Raisi) इस वजह से जनता उन्हें अमेरिका की कठपुतली भी कहती थी. उस समय रुहुल्लाह खुमैनी उनके विरोधी थे और वह राजशाही की जगह विलायत-ए-फकीह (धार्मिक गुरु की संप्रभुता) जैसी पद्धति से शासन की वकालत करते थे. इस वजह से 1964 में उन्हें देश निकाला दे दिया गया. देश में हालात बदतर होने लगे और मोहम्मद रेजा पहलवी देश छोड़कर अमेरिका चले गए. विपक्षी नेता बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया और खुमैनी की ईरान में वापसी हुई और वह यहां के सुप्रीम लीडर बने.
रुहुल्लाह खुमैनी की साल 1989 में तेहरान में मृत्यु हो गई थी. मौजूदा समय में ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई हैं. ईरान में सुप्रीम लीडर की पावर सबसे ज्यादा होती है और राष्ट्रपति को ही सुप्रीम लीडर का उत्तराधिकारी माना जाता है. (Ebrahim Raisi) बीते रविवार को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की विमान दुर्घटना में मौत के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि अयातुल्लाह अली खामेनेई के उत्तराधिकारी कौन होंगे. फिलहाल उपराष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया है.