
China Economy Crisis: शनिवार की सुबह जब अमेरिकी स्टील्थ बॉम्बर्स ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर कहर बरपाया, तब दुनिया सांसें रोके तमाशा देख रही थी — लेकिन बीजिंग में हलचल तेज हो गई थी। ड्रैगन को समझ आ चुका था कि यह हमला सिर्फ ईरान पर नहीं, बल्कि उसके सपनों की आपूर्ति लाइनों पर भी था। (China Economy Crisis) चीन, जो दशकों से अपने आर्थिक विस्तार के लिए मध्य पूर्व के तेल और गैस पर निर्भर है, अब घोर संकट की आहट सुन रहा है। अमेरिका का यह एक हमला पूरे एशियाई बाजार की नसों पर वार जैसा था… और सबसे ज़्यादा असर पड़ा चीन पर!
China Economy Crisis: ड्रैगन की चीख… लेकिन सीमित शक्ति
बीजिंग ने कड़े शब्दों में अमेरिकी हमले की निंदा की। चीन के विदेश मंत्रालय ने इसे “अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए खतरा” करार दिया और ईरान के ‘संप्रभु अधिकारों’ के समर्थन में खड़ा दिखा। (China Economy Crisis) लेकिन दुनिया जानती है कि यह समर्थन महज शब्दों तक सीमित है। चीन की सीमित मध्यस्थ भूमिका, जमीनी प्रभावहीनता और सबसे बड़ी बात — तेल-गैस के नुकसान का डर — उसे ज़्यादा कुछ करने से रोक रहा है। इसलिए जब ईरान ने होर्मुज जलसंधि को ब्लॉक करने की धमकी दी, तो बीजिंग की चिंता और गहरा गई।
होर्मुज ब्लॉकेज और चीन की नींद उड़ गई
होर्मुज जलसंधि यानी वो संकीर्ण समुद्री रास्ता, जहां से दुनिया का एक तिहाई तेल गुजरता है। और इस युद्ध में सबसे पहला झटका यहीं पड़ा है। चीन, जो अमेरिकी प्रतिबंधों की परवाह किए बिना ईरान से कच्चा तेल खरीदता रहा है, अब उस सप्लाई के टूटने के खतरे से घिर गया है। (China Economy Crisis) ऑयलप्राइस डॉट कॉम की रिपोर्ट बताती है कि ईरान में अस्थिरता और होर्मुज की सुरक्षा में दरार आने से चीन की ऊर्जा ज़रूरतें एक बड़े झटके की तरफ बढ़ रही हैं।
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रूस को मिला बड़ा फायदा, चीन की मजबूरी बनी ‘पाइपलाइन दोस्ती’
इधर अमेरिका और ईरान में युद्ध हुआ, उधर मॉस्को में जश्न का माहौल बन गया। रूस ने बड़ी चालाकी से खुद को इस युद्ध में तटस्थ बनाए रखा है — सिर्फ हल्के-फुल्के बयानों में ईरान के लिए चिंता जताई, लेकिन खुलकर कुछ नहीं किया। विशेषज्ञों के मुताबिक रूस जानता था कि इस युद्ध से चीन को सबसे बड़ा झटका लगेगा — और यही उसका मौका है। (China Economy Crisis) रूस अब “पावर ऑफ साइबेरिया 2” नाम की गैस पाइपलाइन परियोजना को लेकर चीन को रिझा रहा है, जिसमें चीन पहले उदासीनता दिखा रहा था।
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‘पावर ऑफ साइबेरिया 2’ — ड्रैगन की नई लत?
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट कहती है कि अब चीन इस परियोजना में अचानक रुचि लेने लगा है। पहले वह रूस के प्रस्तावों से असहमति जताता था — कीमतें, स्वामित्व और अत्यधिक निर्भरता के मुद्दों पर। लेकिन ईरान में हालात बदले, होर्मुज ब्लॉकेज की आहट आई और बीजिंग को समझ आ गया कि उसे बैकअप प्लान चाहिए। अब वही चीन जो ईरान से ज़्यादा तेल खरीदना चाहता था, रूस के साथ ‘गैस डील’ की बातचीत में तेजी लाने लगा है।
कहां से आता है चीन का एनर्जी स्टॉक?
चीन का एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) आयात ज्यादातर कतर, UAE और ऑस्ट्रेलिया से होता है। लेकिन पाइपलाइन से गैस की सबसे बड़ी सप्लाई उसे रूस से मिलती है — खासकर ‘पावर ऑफ साइबेरिया 1’ के ज़रिए, जिसका प्रवाह इस साल 38 बिलियन घन मीटर तक पहुंचने की संभावना है। (China Economy Crisis) अब अगर चीन ‘पावर ऑफ साइबेरिया 2’ को हरी झंडी देता है, तो यह दुनिया के भू-राजनीतिक मानचित्र पर एक बड़ा बदलाव होगा — और अमेरिका के लिए एक कूटनीतिक चुनौती भी।
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ईरान को लेकर चीन की रणनीति में जो भी भावनाएं थीं — सस्ता तेल, साझा अमेरिका-विरोध, बीआरआई (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) की सहमति — वो अब काफ़ी हद तक डगमगा गई हैं। (China Economy Crisis) अगर ईरान में अस्थिरता और युद्ध जारी रहता है, तो चीन को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत चाहिए होंगे — और रूस इस भूख का सबसे बड़ा लाभार्थी बन सकता है।
एक बम और चीन की नींव हिल गई
शनिवार को ईरान के ऊपर गिरे अमेरिकी बम सिर्फ एक देश की संप्रभुता पर हमला नहीं थे, वे पूरी ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला पर हमला थे। और इस हमले से सबसे ज़्यादा असर पड़ा चीन पर। ड्रैगन अब दोहरी मार झेल रहा है — एक तरफ अमेरिका की धमकियां और दूसरी तरफ ईरान की अस्थिरता। (China Economy Crisis) और इसका सबसे बड़ा कूटनीतिक लाभ रूस को मिलता दिख रहा है, जो बड़ी चालाकी से खुद को ‘एनर्जी सोल्जर’ की तरह पेश कर रहा है। अब देखना है — क्या चीन रूस की तरफ पूरी तरह झुक जाएगा? या ईरान में हालात सामान्य होते ही दोबारा पुराने समीकरण लौट आएंगे? लेकिन एक बात तय है — मध्य पूर्व के इस झटके ने बीजिंग की नींद उड़ा दी है… और चीन का अगला कदम अब पूरी दुनिया की नज़र में है।