भारत में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर बहस जारी है। मुस्लिम समुदाय इस कानून और रजिस्टर को लेकर डर और चिंता में है।
CAA-NRC: म्यांमार जैसी नीति
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार की कहानी जगजाहिर है। उन्हें वहां नागरिकता से वंचित कर दिया गया है और उन्हें शरणार्थी के रूप में जीवन जीने पर मजबूर किया गया है। CAA-NRC को लेकर मुस्लिमों का डर यह है कि भारत में भी उनके साथ ऐसा ही न हो।
असम का उदाहरण
असम में NRC लागू किया गया था, जिसमें कई लाख लोगों को नागरिकता से वंचित कर दिया गया था। इनमें से ज्यादातर लोग मुस्लिम थे। यह घटना CAA-NRC को लेकर मुस्लिमों की चिंताओं को और बढ़ा देती है।
मुस्लिम समुदाय को डर है कि CAA-NRC के माध्यम से उन्हें नागरिकता से वंचित कर दिया जाएगा और उन्हें शरणार्थी के रूप में जीवन जीने पर मजबूर किया जाएगा। उन्हें डर है कि उन्हें अपने ही देश में अल्पसंख्यक बनकर रहना होगा।
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सरकार का दावा
सरकार का दावा है कि CAA-NRC किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता नहीं छीनेगा। यह कानून केवल उन लोगों को नागरिकता देने के लिए है जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण पड़ोसी देशों से भारत आए हैं।
2. एनपीआर, सीएए और एनआरसी की क्रोनोलॉजी
मुसलमानों को एक बड़ा डर एनपीआर, एनआरसी और सीएए की क्रोनोलॉजी को लेकर है. मुसमलानों को डर है कि एनपीआर में नाम होने के बाद अगर वे एनआरसी में अपना नाम रजिस्टर नहीं करा पाए, तो उनकी नागरिकता रद्द हो सकती है.
येल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रोहित डे और कैंब्रिज के प्रोफेसर सुरभी रंगनाथन ने 2019 में एनआरसी को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख लिखा था.