Azerbaijan betrayal Iran: ईरान की आंखों में आंखें डालकर अजरबैजान ने कर दिया गद्दारी का ऐलान। इजराइल के खिलाफ खड़ा होने का मौका आया तो पाकिस्तान, तुर्किए जैसे मुल्क आगे आ गए, लेकिन अजरबैजान ने क्या किया? चुप्पी साध ली। (Azerbaijan betrayal Iran) वो भी उस वक्त जब पूरी मुस्लिम दुनिया ‘यहूदी राज्य’ इजराइल के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रही है। इस चुप्पी ने सिर्फ ईरान ही नहीं, बल्कि पूरे इस्लामी वर्ल्ड में आग लगा दी है। (Azerbaijan betrayal Iran) सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं—क्या अब मुस्लिम एकता सिर्फ किताबों तक रह गई है? क्या तेल और पैसा मजहब से बड़ा हो गया है? ये कहानी सिर्फ ‘चुप्पी’ की नहीं है, ये कहानी ‘धोखे’ की है, गद्दारी की है। ये कहानी है अजरबैजान नाम के उस ‘भाईजान’ की, जिसे पाकिस्तान सालों से ‘अपना लहू’ कहता आ रहा है। लेकिन जब बात आई इजराइल बनाम ईरान की, तो अजरबैजान सीधे-सीधे इजराइल के खेमे में बैठा नजर आया। उसकी इस हरकत ने ईरान के लिए नया सिरदर्द खड़ा कर दिया है, वहीं पाकिस्तान और तुर्किए की बेचैनी भी बढ़ गई है।

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Azerbaijan betrayal Iran: मुस्लिम देशों की एकजुटता को लगा तगड़ा झटका
मंगलवार, 17 जून—एक तारीख जिसने पूरे इस्लामी वर्ल्ड की सच्चाई उजागर कर दी। दुनिया के 57 मुस्लिम देशों वाले संगठन OIC में से सिर्फ 21 देश ही आगे आए इजराइल के खिलाफ बोलने। बाकी 36 देश या तो खामोश रहे या फिर कूटनीतिक चुप्पी में लिपटे रहे। ईरान उम्मीद कर रहा था कि इस बार OIC उसकी खुलकर मदद करेगा, लेकिन उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। हैरानी की बात ये कि पाकिस्तान और तुर्किए जैसे देशों ने तो बयान दिया, लेकिन अजरबैजान… जिसने हमेशा खुद को मुस्लिम दुनिया का मजबूत सिपाही बताया, वो पूरी तरह गायब रहा। (Azerbaijan betrayal Iran) इधर अजरबैजान ने चुप्पी साधी, उधर उसका विरोधी आर्मेनिया खुलकर ईरान के समर्थन में आ गया। यही नहीं, ईरान की सरकारी Mehr न्यूज़ एजेंसी ने जब 21 मुस्लिम देशों की लिस्ट जारी की तो उसमें न अजरबैजान का नाम था, न ही बांग्लादेश, न ही सीरिया का।
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तेल के धंधे ने दिल से बड़ा खेल खेल दिया
अब सवाल उठता है कि अजरबैजान ने ऐसा क्यों किया? तो इसका जवाब है पैसा… तेल… और व्यापार। इजराइल के साथ अजरबैजान के व्यापारिक रिश्ते काफी गहरे हैं। पिछले साल अजरबैजान ने इजराइल को 1 मिलियन टन तेल बेचा था। इस साल भी वो सौदा दोहराने की तैयारी में है। (Azerbaijan betrayal Iran) अगर अजरबैजान ईरान के समर्थन में बोल देता, तो सीधे-सीधे इजराइल के साथ उसका तेल व्यापार खतरे में पड़ जाता। यानी एक तरफ मजहबी रिश्ते… दूसरी तरफ डॉलर और यूरो की चमक। अजरबैजान ने तय कर लिया कि उसके लिए डॉलर की कीमत ‘भाईचारे’ से ज्यादा है। इसीलिए उसने मुस्लिम देशों की सामूहिक आवाज में शामिल होने से इंकार कर दिया।
तुर्किए का ‘डबल गेम’, ईरान को लगा करंट
अब बात तुर्किए की करें तो वो भी कोई दूध का धुला नहीं निकला। एक तरफ तुर्किए ईरान पर हुए हमलों की निंदा कर रहा है, दूसरी तरफ पर्दे के पीछे उसकी चाल बिल्कुल अलग है। (Azerbaijan betrayal Iran) तुर्किए चाहता है कि ईरान कभी भी परमाणु शक्ति न बने। (Azerbaijan betrayal Iran) इसलिए वो अमेरिका के साथ मिलकर ईरान और इजराइल के बीच ‘समझौते’ का खेल खेल रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन एक तरफ मुसलमानों के हिमायती बनते हैं, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के इशारों पर नाचते भी नजर आते हैं। यानी सामने से मुस्कान, पीछे से खंजर। यही वजह है कि ईरान फिलहाल तुर्किए के इस खेल पर ‘साइलेंट मोड’ में है। लेकिन अंदर ही अंदर तेहरान में गुस्सा उबल रहा है।
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‘मुस्लिम एकता’ की असलियत उजागर
सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि जब OIC जैसे संगठन के पास 57 मुस्लिम देश हैं, तो आखिर सिर्फ 21 ही क्यों आगे आए? कहां गई वो मुस्लिम एकता, जिसके दम पर इजराइल को घेरने का सपना देखा जाता था? सच्चाई ये है कि मुस्लिम देशों की एकता सिर्फ तस्वीरों और बयानों तक सिमट कर रह गई है। (Azerbaijan betrayal Iran) बांग्लादेश और सीरिया जैसे देशों ने भी चुप्पी साध ली, जो पहले ईरान के करीबी माने जाते थे। इस पूरे घटनाक्रम ने साबित कर दिया कि ‘धंधा’ मजहब से बड़ा हो गया है। अजरबैजान का इजराइल से तेल व्यापार, तुर्किए का अमेरिका के साथ गठजोड़ और OIC की बिखरी हुई स्थिति ने ईरान को अकेले खड़ा कर दिया है।
ईरान के लिए अकेली लड़ाई का ऐलान
अब ईरान के सामने चुनौती साफ है—या तो वो अकेले इस लड़ाई को लड़े, या फिर तुर्किए और अजरबैजान जैसे ‘दोमुंहे दोस्तों’ से उम्मीदें छोड़ दे। आर्मेनिया जैसे विरोधी देश भले ही साथ खड़े हो गए हों, लेकिन अपने ही ‘भाईजान’ ने पीठ में छुरा घोंप दिया है। तेहरान की सड़कों पर गुस्सा है, सोशल मीडिया पर उबाल है, और खाड़ी देशों में कानाफूसी शुरू हो गई है। (Azerbaijan betrayal Iran) इस बार की जंग सिर्फ मिसाइलों की नहीं होगी, ये जंग भरोसे और गद्दारी की भी होगी। और इसमें सबसे बड़ा सवाल यही रहेगा—क्या मुस्लिम दुनिया अब कभी इजराइल के खिलाफ एकजुट हो पाएगी? या फिर हर बार ‘धंधे’ के आगे मजहब हारता रहेगा?अभी तो शुरुआत है… असली खेल अभी बाकी है।