
US angry at Pakistan: यह वाक्य अब पाकिस्तान की हालिया विदेश नीति पर बिल्कुल सटीक बैठता है। दुनिया के सबसे ताक़तवर देश अमेरिका के लिए पाकिस्तान की एक नई ‘दोस्ती’ शायद अब बेचैनी की वजह बनने लगी है। वजह है पाकिस्तान का खुलकर ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा का समर्थन करना। जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने खुले मंच से यह कह दिया कि “ईरान को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा हासिल करने का पूरा हक है” तो यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि एक सियासी झटका था। (US angry at Pakistan) खासकर उस अमेरिका के लिए, जो लंबे वक्त से ईरान की परमाणु क्षमता का सबसे बड़ा विरोधी रहा है। और तो और, जब यह बयान उस देश से आता है, जिसे अमेरिका ने अपना “गैर-नाटो सहयोगी” घोषित किया हो, तो मिर्ची लगना लाज़मी है।
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US angry at Pakistan: ईरानी राष्ट्रपति की पाकिस्तान यात्रा
ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन का दो दिवसीय पाकिस्तान दौरा अपने आप में कई संदेश लेकर आया। इस यात्रा के दौरान ईरान और पाकिस्तान के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए, जिनमें व्यापार, सीमा सुरक्षा और क्षेत्रीय सहयोग जैसे मुद्दे प्रमुख रहे। लेकिन जो सबसे ज़्यादा चर्चा में रहा, वह था साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस का वह पल, जब पाकिस्तान ने दुनिया के सामने खुलकर ईरान के परमाणु अधिकार का समर्थन कर डाला। (US angry at Pakistan) प्रधानमंत्री शरीफ ने न केवल ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम का समर्थन किया, बल्कि यह भी कहा कि पाकिस्तान इस मामले में “पूरी मजबूती” से ईरान के साथ खड़ा है। यह बयान उस वक्त आया है, जब अमेरिका और इजरायल मिलकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले कर चुके हैं और तेहरान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी (IAEA) से दूरी बना ली है।
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अमेरिका के लिए दोहरी चुनौती
अमेरिका के लिए यह डिप्लोमैटिक झटका उस वक्त और गहरा हो जाता है, जब वह पाकिस्तान को अपना सामरिक सहयोगी मानता है। बीते कई दशकों में अमेरिका ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर की सैन्य और आर्थिक मदद दी है, ताकि वह आतंकवाद और पश्चिमी हितों की रक्षा में एक रणनीतिक मोहरा बना रहे। (US angry at Pakistan) लेकिन अब वही पाकिस्तान उस देश के साथ खड़ा नजर आ रहा है, जिसे अमेरिका अपने सबसे बड़े दुश्मनों में गिनता है। पाकिस्तान का यह स्टैंड एक नई वैश्विक ध्रुवीकरण की ओर संकेत करता है। यह बताता है कि अब राष्ट्र अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव कर रहे हैं। अब अमेरिका की “ताकतवर दोस्ती” का तमगा हर देश के लिए उतना आकर्षक नहीं रहा।
गाजा पर हमला और मुस्लिम एकजुटता की मांग
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने सिर्फ ईरान की हिमायत नहीं की, बल्कि गाजा में इजरायल की सैन्य कार्रवाई की भी खुलकर आलोचना की। उन्होंने इसे मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन बताया और मुस्लिम देशों से एकजुट होने की अपील की। यह बयान भी अमेरिका को असहज करने वाला है, क्योंकि इजरायल अमेरिका का सबसे करीबी सहयोगी है और गाजा पर उसके हर कदम को वॉशिंगटन से अप्रत्यक्ष समर्थन मिलता रहा है। (US angry at Pakistan) शरीफ के इस बयान ने यह साफ कर दिया कि पाकिस्तान अब पश्चिम के हिसाब से नहीं, बल्कि अपनी रणनीतिक सोच और धार्मिक भावनाओं के आधार पर कदम बढ़ा रहा है। इस्लामी देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना अब उसकी प्राथमिकता बनती दिख रही है।
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ईरान-पाकिस्तान संबंध सिर्फ सियासत तक सीमित नहीं रह गए हैं। दोनों देशों ने अपने आपसी व्यापार को 8 अरब डॉलर सालाना तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। भूगोलिक नज़दीकी और साझा सीमाओं का फायदा उठाते हुए दोनों देशों के मंत्री अब आर्थिक और ऊर्जा सहयोग को नया विस्तार देना चाहते हैं। (US angry at Pakistan) यह भी अमेरिका के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि उसने ईरान पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं और चाहता है कि दूसरे देश उससे दूरी बनाए रखें। लेकिन पाकिस्तान का यह नया रुख इन प्रतिबंधों को चुनौती देने जैसा है।
क्या पाकिस्तान बदल रहा है खेमे?
पाकिस्तान की विदेश नीति का यह नया रुख यह संकेत दे रहा है कि वह अब अमेरिका की छाया से बाहर निकलने की कोशिश में है। ईरान के साथ बढ़ती नज़दीकियां, इजरायल की आलोचना और मुस्लिम देशों की एकता की अपील ये सब मिलकर एक नई दिशा की ओर इशारा कर रहे हैं। (US angry at Pakistan) क्या यह बदलाव स्थायी है? क्या पाकिस्तान अब चीन, रूस और ईरान जैसे देशों के साथ मिलकर एक नया मोर्चा बनाने की तैयारी में है? या यह सिर्फ एक रणनीतिक संतुलन का हिस्सा है, जिससे वह दोनों खेमों में अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखना चाहता है? इन सवालों के जवाब आने वाले महीनों में सामने आएंगे। (US angry at Pakistan) लेकिन इतना तय है पाकिस्तान के हालिया बयानों से अमेरिका की भौंहें जरूर तन गई हैं। और जब बात परमाणु हथियारों और ईरान की हो, तो अमेरिका का चुप बैठना आसान नहीं होता।