International Trade Local Currency: दुनिया की अर्थव्यवस्था लंबे समय तक अमेरिकी डॉलर के इर्द-गिर्द चलती रही है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार हो या तेल की खरीद-फरोख्त, हर जगह डॉलर ही सबसे बड़ा माध्यम रहा। लेकिन अब हालात धीरे-धीरे बदलते नजर आ रहे हैं। वैश्विक राजनीति, आर्थिक प्रतिबंधों का डर और डॉलर में उतार-चढ़ाव ने कई देशों को नए रास्ते खोजने पर मजबूर कर दिया है। इसी वजह से आज यह सवाल उठने लगा है कि क्या डॉलर का दबदबा कमजोर हो रहा है।
International Trade Local Currency: डॉलर पर निर्भरता क्यों घट रही है
कई देशों को यह एहसास हुआ है कि डॉलर पर जरूरत से ज्यादा निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है। जब किसी देश पर प्रतिबंध लगते हैं तो उसका डॉलर आधारित कारोबार ठप पड़ सकता है। (International Trade Local Currency) इसके अलावा डॉलर में लेनदेन करने से मुद्रा विनिमय की लागत बढ़ती है और विदेशी मुद्रा भंडार पर भी दबाव पड़ता है। ऐसे में अपनी ही मुद्रा में व्यापार करना देशों के लिए ज्यादा सुरक्षित और सस्ता विकल्प बनता जा रहा है।
लोकल करेंसी में व्यापार का बढ़ता चलन
अब कई देश आपस में अपनी स्थानीय मुद्राओं में व्यापार कर रहे हैं। इसे लोकल करेंसी ट्रेड कहा जाता है। इससे भुगतान आसान होता है और डॉलर की जरूरत कम पड़ती है। (International Trade Local Currency) साथ ही इससे आर्थिक आत्मनिर्भरता भी बढ़ती है। यही कारण है कि यह मॉडल धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है।
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भारत की बदलती सोच
भारत ने भी हाल के वर्षों में इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। कुछ देशों के साथ व्यापार में रुपये के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है। खासकर ऊर्जा और जरूरी सामानों की खरीद में वैकल्पिक भुगतान व्यवस्था अपनाई गई। (International Trade Local Currency) भारत के पड़ोसी देशों में भारतीय रुपये की स्वीकार्यता पहले से ही अच्छी रही है, और अब इसे औपचारिक रूप से मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। खाड़ी देशों के साथ भी लोकल करेंसी में व्यापार के नए रास्ते खुले हैं।
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चीन और युआन की भूमिका
चीन अपनी मुद्रा युआन को वैश्विक स्तर पर मजबूत करना चाहता है। वह कई देशों के साथ व्यापार में डॉलर की जगह युआन के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहा है। (International Trade Local Currency) ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर और कर्ज से जुड़े समझौतों में युआन की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। इससे एशिया और अन्य क्षेत्रों में मुद्रा संतुलन बदलता दिख रहा है।
रूस की बदली रणनीति
पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद रूस को भी डॉलर और यूरो से दूरी बनानी पड़ी। इसके बाद उसने अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ वैकल्पिक मुद्राओं में भुगतान को अपनाया। इससे रूस को अंतरराष्ट्रीय व्यापार जारी रखने में मदद मिली।
अन्य क्षेत्रों में क्या हो रहा है
लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और खाड़ी देशों में भी डॉलर के अलावा दूसरे विकल्पों पर विचार हो रहा है। (International Trade Local Currency) कुछ देश आपसी व्यापार में अपनी मुद्राओं का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो कहीं बार्टर सिस्टम जैसे पुराने तरीकों को भी दोबारा अपनाया जा रहा है।
आगे क्या संकेत मिलते हैं
हालांकि डॉलर अब भी वैश्विक अर्थव्यवस्था की मजबूत कड़ी है, लेकिन यह साफ है कि दुनिया अब एक ही मुद्रा पर निर्भर नहीं रहना चाहती। बदलाव धीरे-धीरे हो रहा है, लेकिन दिशा साफ है। आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार ज्यादा संतुलित और बहुध्रुवीय होता नजर आ सकता है।
