
India UK FTA Agreement: आज वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ अधिक संरक्षणवादी और राजनीतिक दृष्टि से अस्थिर युग में प्रवेश कर चुकी हैं। ऐसे में, सामूहिक लाभ के लिए सही और प्रभावी व्यापार समझौतों की अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता। हाल ही में सम्पन्न हुआ भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता, जिसे आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने यूके दौरे के दौरान साइन करेंगे। यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि प्रभावी व्यापार वार्ताएँ समयसीमा से ज्यादा दीर्घकालिक रणनीतिक हितों पर आधारित होती हैं। ट्रंप प्रशासन, जो भारत के साथ व्यापार वार्ताओं में उलझा हुआ है। इस समझौते से कूटनीति और आर्थिक राजनीति में कई अहम सबक ले सकता है।
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भारत-यूके FTA कोई जल्दीबाजी में हुआ समझौता नहीं है इसे बड़े कूटनीतिक और एक-दूसरे की प्राथमिकताओं का सम्मान को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया। इसे लेकर दोनों देशों के बीच तीन साल तक बातचीत हुई। इस दौरान कई जटिल मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ। (India UK FTA Agreement) जैसे यूके का शराब पर टैरिफ में कमी की मांग और भारत का प्रोफेशनल्स के लिए बेहतर वीजा व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा का आग्रह। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने दिवाली 2022 तक समझौते को अंतिम रूप देने का ऐलान किया था। लेकिन वह समयसीमा पूरी नहीं हो पाई। जिसके बाद 14 दौर की वार्ताएँ चलीं। जिनमें कई संघर्षपूर्ण मुद्दों का समाधान तलाशा गया। इस लंबी प्रक्रिया से यह संदेश गया कि व्यापार समझौतों में जल्दबाजी नहीं बल्कि सोच-समझकर और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है।
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India UK FTA Agreement: ट्रंप की व्यापार नीति में समस्या
इसके विपरीत, ट्रंप प्रशासन का व्यापार नीति दृष्टिकोण अक्सर शुल्कों की धमकियों और कृत्रिम समयसीमाओं पर आधारित रहा है। भारत और अमेरिका के बीच वार्ताएँ पहले ही पाँच दौरों से गुजर चुकी हैं और अब छठा दौर दिल्ली में होने वाला है। (India UK FTA Agreement) जुलाई 9 की पहली निर्धारित समयसीमा पहले ही समाप्त हो चुकी है और अगस्त 1 की दूसरी समयसीमा भी संभवतः बिना किसी समझौते के निकल जाएगी।
हालाँकि ट्रंप ने भारत को शुल्क बढ़ाने की नोटिफिकेशन नहीं भेजी। जैसा वो 20 और देशों को भेज चुके हैं। फिर भी टैरिफ बढ़ने की संभावना हमेशा बनी रहती है। अमेरिकी वित्तमंत्री स्कॉट बेंटन का यह बयान कि गुणवत्ता समय से अधिक महत्वपूर्ण है। इस रणनीति के भीतर एक सावधानी का संकेत देता है। (India UK FTA Agreement) लेकिन उनकी यह भी स्वीकारोक्ति कि टैरिफ को फिर से एक हथियार के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह बताता है कि अमेरिका व्यापार को केवल एक तात्कालिक सौदे के रूप में देखता है न कि एक वार्ता के रूप में।
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भारत-यूके FTA से ट्रंप को क्या सीखना चाहिए
ट्रंप प्रशासन को यह समझना चाहिए कि विश्वास और सम्मान पर आधारित दीर्घकालिक व्यापार साझेदारियाँ, डर और धमकियों से कहीं ज्यादा मजबूत होती हैं। (India UK FTA Agreement) जब अमेरिका टैरिफ लगाने की धमकियों के जरिए दबाव बनाता है तो यह देशों को एलियनेट कर सकता है।
यूके से ट्रेड वार्ता को लेकर भारत का इस वार्ता में जो रुख था। वह यह दर्शाता है कि वह दबाव में आकर समझौता करने के बजाय सही समझौते के लिए इंतजार करने को तैयार है। यह ट्रंप प्रशासन के लिए एक अहम संकेत है कि जल्दी समझौते जो केवल धमकियों या समयसीमाओं से हासिल किए जाते हैं, दीर्घकालिक स्थिरता और रणनीतिक महत्व नहीं रखते।