India Bangladesh tensions: दक्षिण एशिया की भू-राजनीति एक बार फिर भयंकर रूप से उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। बांग्लादेश में जारी राजनीतिक अस्थिरता और वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं पर लगातार बढ़ते हमलों को लेकर भारत में चिंता बढ़ती जा रही है। सुरक्षा विशेषज्ञों और रणनीतिक हलकों में यह सवाल खड़े होना शुरू हो गए हैं कि क्या भारत के खिलाफ एक ‘तीसरा मोर्चा’ धीरे-धीरे सक्रिय हो रहा है, जिसमें प्रत्यक्ष युद्ध के बजाय प्रॉक्सी रणनीतियों का सहयोग लिया जा रहा है।
India Bangladesh tensions: प्रॉक्सी टकराव का संकेत
जानकारी के मुताबिक, बांग्लादेश की सैन्य क्षमता भारत से सीधे टकराव की नहीं है, इसलिए सीमा-पार तनाव, कूटनीतिक दबाव, आंतरिक अस्थिरता और सामाजिक विभाजन जैसे तरीकों से भारत को परेशान करने का प्रयास किया जा सकता है। India Bangladesh tensionsसाल 1980 के दशक में पाकिस्तान द्वारा अपनाई गई प्रॉक्सी रणनीति का हवाला देते हुए ऐसा कहा जा रहा है कि वर्तमान घटनाक्रम उसी पैटर्न की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया पर सवाल
हाल ही में हुई हिंसक घटनाओं में एक व्यक्ति की मौत पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग, अमेरिका, फ्रांस और यूरोपीय देशों की त्वरित प्रतिक्रियाएं सामने आईं। लेकिन आलोचकों का कहना है कि 5 अगस्त 2024 के बाद से बांग्लादेश में हिंदुओं पर कथित हमलों, हत्याओं और उत्पीड़न पर अंतरराष्ट्रीय मंचों की चुप्पी सवाल खड़े करती है। (India Bangladesh tensions) भारत में यह धारणा अब मजबूत हो रही है कि वैश्विक प्रतिक्रिया चयनात्मक है और इससे ढाका को नैतिक समर्थन मिलता नज़र आता है।
भारत में जनता का आक्रोश
दिल्ली में बीते दिनों बांग्लादेश उच्चायोग के सामने हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद देश के अन्य हिस्सों कोलकाता, झारखंड और त्रिपुरा में भी आवाज़ें उठीं। (India Bangladesh tensions) विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और स्थानीय संगठनों के प्रदर्शन ने यह संकेत दिया कि जन-आक्रोश अब सीमित नहीं रहा। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे दबाव ने ही हाल में ढाका को बयान में नरमी लाने पर मजबूर किया, जहां कुछ आरोपों में ‘स्पष्ट प्रमाण’ न होने की बात कही गई।
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सरकार की ‘ग्रेडेड रिस्पांस’ नीति
भारत सरकार अब तक कूटनीतिक तौर पर ‘ग्रेडेड रिस्पांस’ यानी चरणबद्ध प्रतिक्रिया की नीति पर बरक़रार है। राजनयिकों के अनुसार, जिम्मेदार राष्ट्र होने के नाते भारत शुरुआती स्तर पर अधिकतमवादी कदम नहीं उठाता। (India Bangladesh tensions) लेकिन आलोचक सवाल खड़े कर रहे हैं – क्या यह पहला दिन है? साल 1975 के बाद से बांग्लादेश के साथ संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आए, पर हर बार संयम ही प्राथमिकता रहा। अब सवाल है कि क्या संयम की सीमा आ गई है?
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा बनाम रणनीतिक मजबूरी
एक बड़ा तर्क यह भी है कि यदि भारत सख्त कदम उठाता है तो बांग्लादेश में लगभग 8% हिंदू आबादी पर प्रतिशोध बढ़ सकता है। इतिहास के अनुसार, दशकों में यह प्रतिशत 28% से कम होकर मौजूदा स्तर तक आया है। आलोचक कहते हैं कि केवल आशंकाओं के कारण निर्णायक कार्रवाई टालने से हालात सुधरे नहीं, बल्कि और बिगड़े हैं।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच भारत की घरेलू राजनीति भी चर्चा इस वक़्त में है। कुछ नेताओं के बयानों को देशहित के खिलाफ बताते हुए कड़ी आलोचना हो रही है। रणनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे बयान पड़ोसी देशों और कट्टरपंथी तत्वों का मनोबल बढ़ाते हैं और भारत की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर करते हैं।
बड़े खेल की आशंका
कई विशेषज्ञ इसे सिर्फ द्विपक्षीय मुद्दा नहीं मानते। (India Bangladesh tensions) उनका कहना है कि चीन, पाकिस्तान और पश्चिमी ताकतों के हित इस क्षेत्र में टकराते रहे हैं। बांग्लादेश की अस्थिरता भारत के आर्थिक और सुरक्षा हितों को प्रभावित कर सकती है। कुछ विश्लेषणों में यह भी कहा जा रहा है कि भारत को युद्ध में उलझाने या उसकी विकास गति को बाधित करने का प्रयास हो सकता है।
आगे का रास्ता
भारत के सामने इस वक़्त चुनौती बेहद कठिन है। (India Bangladesh tensions) एक तरफ़ आर्थिक विकास की रफ्तार बनाए रखना, दूसरी तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करना। विशेषज्ञों का सुझाव है कि कूटनीति, आर्थिक दबाव, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रियता और सीमाई सुरक्षा, इन सभी मोर्चों पर संतुलित लेकिन साफ़ रणनीति की आवश्यकता है।
बता दे, बांग्लादेश में जारी संकट ने भारत के लिए नई सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौती खड़ी कर दी है। सवाल यह नहीं कि प्रतिक्रिया हो या न हो, बल्कि यह है कि प्रतिक्रिया का स्तर और वक़्त क्या होना चाहिए। आगामी दिनों में सरकार की रणनीति और जनभावना, दोनों यह तय करेंगे कि यह ‘तीसरा मोर्चा’ कितना गंभीर रूप लेता है।
