
China Nepal Border: चीन की दक्षिण एशियाई नीति में नेपाल एक महत्वपूर्ण कड़ी बनकर उभरा है। भारत और नेपाल के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों के बावजूद चीन लगातार नेपाल में भारत विरोधी भावना को हवा देने का प्रयास कर रहा है। यह केवल भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक गहन सोच-समझ कर रची गई योजना है जिससे भारत की पड़ोसी देशों में पकड़ को कमजोर किया जा सके। नेपाल और भारत के बीच रोटी-बेटी का संबंध सदियों पुराना है। यह संबंध सिर्फ सांस्कृतिक ही नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी गहराई से जुड़ा हुआ है। स्वयं भगवान श्रीराम ने नेपाल के जनकपुर की राजकुमारी सीता से विवाह कर भारत-नेपाल संबंधों को एक पवित्र आधार दिया था। (China Nepal Border) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ जोकि नाथ सम्प्रदाय से आते हैं, को नेपाल के कुछ परिवारों में अपना कुल गुरु माना जाता रहा है और यही सम्मान योगी जी को भी दिया जाता है। सीमावर्ती क्षेत्रों में आज भी दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के त्योहार, रिश्ते और व्यावसायिक जीवन में सहभागी बनते हैं।
Also Read –Urfi Javed Sister Video: उर्फी जावेद की बहन को फेम मिलते ही आया घमंड, उर्फी के लिए कह दी इतनी बड़ी बात
China Nepal Border: चीन की रणनीति के पीछे कारण का मुख्य कारण
भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा : चीन ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत नेपाल में भारी निवेश कर रहा है। वह नेपाल को अपनी रणनीतिक मुहिम में शामिल कर भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ को चुनौती देना चाहता है। (China Nepal Border) सीमा विवाद और असंतोष को हवा देना : चीन नेपाल को भारत के साथ सीमाई मुद्दों (जैसे कालापानी, लिपुलेख, लिम्पियाधुरा विवाद) को उभारने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे नेपाल में भारत के प्रति अविश्वास बढ़े। राजनीतिक हस्तक्षेप : चीन नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच मध्यस्थता कर उनके भारत विरोधी रुख को हवा देने का काम मजबूती से कर रहा है। इससे भारत विरोधी प्रचार को राजनीतिक संरक्षण मिलता है।
Also Read –Ozzy Osbourne Death: कौन थे और कितने अमीर थे, जिनके निधन से मनोरंजन जगत में छाया शोक
प्रभावित वर्ग और सोच
नेपाल में भारत विरोधी माहौल का सर्वाधिक असर शहरी मध्यम वर्ग, युवा पीढ़ी, और कम्युनिस्ट विचारधारा वाले राजनीतिक समर्थकों पर पड़ा है। (China Nepal Border) सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों से फैलाई जा रही जानकारी के जरिए चीन भारत को एक ‘दखलअंदाज’ देश के रूप में प्रस्तुत करता है और अपने को ‘विकास का साझेदार’ दिखाता है। नेपाल के मधेशी समुदाय (जो भारत से गहरे जातीय और भाषायी रूप से जुड़ा हुआ हैं) में आज भी भारत के प्रति सकारात्मक भावना है। वे चीन की मंशा को समझते हैं और भारत को सहयोगी और भाईचारा निभाने वाला पड़ोसी मानते हैं। लेकिन हिमालयी क्षेत्र और राजधानी काठमांडू में कुछ तबकों में भारत के खिलाफ संदेह और असंतोष ज़रूर फैला हुआ है।
नेपालगंज के समीप बर्दिया जिले के निवासी व्यवसायी अरुण चंद का कहना है कि, नेपाली राजनेताओं ने नेपाल को कमजोर और दूसरों पर निर्भर बना दिया है। भ्रष्टाचार नेपाल की सभी समस्याओं की जड़ है। (China Nepal Border) भारत, नेपाल का प्रमुख व्यापारिक भागीदार और दाता है, इसके अलावा धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध भी हैं, इसलिए दोनों के बीच अच्छे संबंध होने चाहिए। चीन की नीति स्पष्ट रूप से “विभाजन करो और राज करो” जैसी है। भारत को चाहिए कि वह नेपाल के साथ संवाद को और मजबूत करे, युवाओं को सच्चाई से अवगत कराए और सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क बढ़ाए। नेपाल में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो भारत को अपना घनिष्ठ मित्र मानता है।
- Advertisement -
एक अन्य व्यवसायी धीरेंद्र बहादुर सिंह का मत है कि नेपाल – भारत के बीच समर्थन, संवाद और विश्वास की अति आवश्यकता है। भारत को चीन की साजिशों को बेनकाब करने के साथ-साथ नेपाल की संप्रभुता का सम्मान करते हुए रिश्तों को फिर से और ज्यादा मजबूत़ बनाना का प्रयास करना होगा। नेपाल के हितों का पूरा ध्यान देना होगा। (China Nepal Border) साथ ही नेपाल को चीन की विस्तारवादी नीति से सचेत रहने की आवश्यकता है। भारत को अपने रवैये में लचीलेपन बनाये रखने की जरूरत है। नेपाल के युवा वर्ग की नब्ज भारत को टटोलने की आवश्यकता है।