Social Media Addiction India: ललक—और वह भी मशहूर होने की। रास्ता भी बेहद आसान। हाथों में स्मार्टफोन और उसमें समाया सोशल मीडिया। काफ़ी खूबसूरत और बेहतरीन मंजर लगता है। (Social Media Addiction India) लेकिन हर चमकती चीज़ के पीछे अंधेरा भी होता है—और वही अंधेरा है इस सोशल मीडिया के पीछे। मशहूर होने, पहचान बनाने, लोगों से स्वीकारोक्ति पाने के लिए सोशल मीडिया ने कई-कई रास्ते बना दिए हैं। मुफ़्त के रास्ते। (Social Media Addiction India) बिना मेहनत वाले रास्ते। कुछ भी कर देने वाले रास्ते। लेकिन इनकी कीमत भी चुकानी पड़ती है—जो पता तब चलती है जब बहुत कुछ चला जाता है।
आप मानें या न मानें, सोशल मीडिया बहुत ताक़तवर है। कुछ भी कर सकने की ताक़त है इसमें। इतनी ताक़त है कि यह किसी माँ से उसके हाथों उसका बच्चा बिकवा सकता है। नज़ीर सामने है—पश्चिम बंगाल की उस महिला और उसके पति के रूप में जिन्होंने सोशल मीडिया पर मशहूर होने के पागलपन में अपने 8 महीने के बच्चे को बेच दिया और मिले पैसे से iPhone ख़रीद लिया ताकि इंस्टाग्राम पर बढ़िया-बढ़िया रील्स बना सकें। (Social Media Addiction India) ऐसा ही हुआ था चीन में—जहाँ एक दंपति ने iPhone खरीदने के लिए अपनी 18 दिन की नवजात बेटी को बेच दिया था। और यही हुआ ऑस्ट्रेलिया में—जहाँ एक महिला ने iPhone के बदले अपने अजन्मे बच्चे की अदला-बदली का सौदा कर डाला था। इन्हें iPhone क्यों चाहिए था? सोशल मीडिया के लिए। इस्तेमाल करने के लिए। यही है सोशल मीडिया की ताक़त—दिमाग और दिल पर क़ब्ज़ा करने की ताक़त।
इसी सोशल मीडिया पर रील्स और स्टोरी डालने के फेर में मुंबई में एक दंपति समुद्र की लहरों में समा गए, जबकि उनका बेटा “मम्मी-मम्मी अब आ जाओ” चिल्लाता रह गया। (Social Media Addiction India) कर्नाटक में एक 23 वर्षीय युवक रील बनाते-बनाते वॉटरफॉल में बह गया, पता भी नहीं चला। सूरत में रील बनाने के दौरान एक लड़का मालगाड़ी की चपेट में आ गया। डरावनी दास्तानें बहुत सी हैं—हमारे समाज की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से। कहीं टिकटॉक, कहीं इंस्टाग्राम, कहीं स्नैपचैट, वाइबू या फेसबुक।
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सोशल मीडिया की ताक़त का अंदाज़ इस डेटा से भी लगाइए—भारत में व्हाट्सऐप के सक्रिय यूज़र्स हैं 53.14 करोड़, इंस्टाग्राम के 51.69 करोड़, फेसबुक के 49.27 करोड़, टेलीग्राम के 38.40 करोड़ और फेसबुक मैसेंजर के 34.39 करोड़। अब तो Threads नाम से नया प्लेटफ़ॉर्म भी आ गया है। आगे और भी आएँगे और करोड़ों लोग जुड़ेंगे।
दुनिया भर की बात करें तो साल 2017 में 2.73 अरब लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे थे, जो 2023 में 4.89 अरब हो चुके हैं और 2027 तक 5.85 अरब हो जाएंगे। यह संख्या चौंकाने वाली है। 2023 में संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया की कुल आबादी 8 अरब से थोड़ी ज़्यादा है। (Social Media Addiction India) यानी आधी से ज़्यादा दुनिया सोशल मीडिया में ग़ाफ़िल है। यह बहुत बड़ी संख्या है—और बढ़ती जा रही है। लेकिन यह क्या-क्या गुल खिला रही है, इसका अंदाज़ यूज़र्स को खुद भी नहीं है।
दरअसल, सोशल मीडिया का मतलब हमने ही बिगाड़ लिया। सोशल का अर्थ है—सामाजिक होना। समाज की रवायतों का पालन करना। (Social Media Addiction India) जो समाज में घुल-मिलकर रहे, सबसे मिले-जुले—वह सोशल है और वही सोशल एक्टिविटी है। मीडिया यानी माध्यम, एक ज़रिया। लेकिन अब सोशल मीडिया जुड़ाव पैदा करने की बजाय दूरियाँ बनाने लगा है। बच्चे को बिकवा दे, जान लेने लगे—तो फिर क्या कहेंगे?
सेल्फ़ी किस तरह हमारे जीवन में घुस चुकी है, इसका अंदाज़ इसी से लगाइए कि अब शादी-ब्याह, बर्थडे या किसी आयोजन में बाकायदा सेल्फ़ी पॉइंट बनाए-सजाए जाते हैं। रेस्टोरेंट और होटलों में स्थायी सेल्फ़ी पॉइंट दिखते हैं। सरकारें तक शहरों, कस्बों, रेलवे और बस स्टेशनों पर सेल्फ़ी की व्यवस्था करने लगी हैं। पहले ऐसा नहीं था। (Social Media Addiction India) अब यह ज़िंदगी का हिस्सा है। सब एक-दूसरे की सेल्फ़ी, रील, स्टेटस, स्टोरी देख रहे हैं, लाइक कर रहे हैं और भूलते जा रहे हैं। कोई स्टोरी, रील या स्टेटस स्थायी नहीं है। कल क्या किया था, याद नहीं रहता। फिर भी ऐसी होड़ लगी है कि बच्चे बेचने तक की नौबत है। सोशल दुनिया में जहाँ सब कुछ अनलिमिटेड है—बस लाइक्स चाहिए। चाहे उसके लिए जान ही क्यों न दाँव पर लगानी पड़े।
सवाल यह है—इतने विशाल सोशल मीडिया यूनिवर्स से क्या ज़िंदगियाँ बेहतर हुई हैं? क्या दुनिया ज़्यादा सुंदर हुई है? क्या ज़िंदगी आसान बनाने के इंतज़ाम हुए हैं? जवाब हमारे चारों तरफ़ मौजूद हैं। (Social Media Addiction India) इनके जवाब रील्स, स्टेटस और स्टोरी से मिल पाएँगे क्या कभी? ईमानदारी से तलाशें तो हाथ लगता है—कभी नहीं।
क्योंकि यह तो अभी उस घटाटोप अंधेरे का शैशव काल है। अभी यौवन शेष है। सोशल मीडिया की शुरुआत 1990 के दशक के मध्य में Geocities, Classmates.com और SixDegrees.com जैसे प्लेटफार्मों से हुई। SixDegrees पहली साइट थी जिसने असली लोगों को उनके असली नाम से जोड़ा और प्रोफाइल, मित्र सूची और स्कूल संबद्धता जैसी सुविधाएँ दीं। इसे CBS News ने पहली सोशल नेटवर्किंग साइट कहा।
2000 के दशक में Friendster और MySpace जैसे प्लेटफ़ॉर्म लोकप्रिय हुए। फिर आए फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर। और इनके दंश के रूप में हम इंसान की आत्मा और संवेदना मरते हुए देख रहे हैं। भावनाओं के ख़ात्मे के रूप में देख रहे हैं। भौतिकता के अंतहीन विस्तार के रूप में देख रहे हैं। (Social Media Addiction India) रिश्तों की मौत के रूप में देख रहे हैं। वास्तविक दुनिया की जगह आभासी दुनिया के विस्तार के रूप में देख रहे हैं। नैतिक और मौलिक पतन के रूप में देख रहे हैं। समाज को बाज़ार और आदमी को प्रोडक्ट बनते हुए देख रहे हैं।
कार्ल मार्क्स ने कहा था कि सभी सामाजिक संबंध आर्थिक चर पर निर्भर करते हैं। एडम स्मिथ ने आर्थिक मानव की संकल्पना दी थी। हास्य अभिनेता महमूद ने फिल्म बनाई थी—“सबसे बड़ा रुपैया।” ये तीनों बातें अलग-अलग कालखंड में कही या घटित हुईं। तब आलोचना भी हुई, ख़ासकर भारत में। (Social Media Addiction India) लेकिन जब कहीं बच्चा बिकता है, कहीं वॉटरफॉल में लोग बह जाते हैं, कहीं ट्रेन की चपेट में आने की घटनाएँ होती हैं—तो लगता है कि इंसान के अंतहीन पतन का सिरा हम बहुत पहले से देख रहे थे।
2025 की ताज़ा सोशल मीडिया रिपोर्ट्स भी खतरे की घंटी बजा रही हैं। भारत में औसतन हर यूज़र अब रोज़ाना 3 घंटे 12 मिनट सोशल मीडिया पर बिताता है। (Social Media Addiction India) सबसे ख़तरनाक ट्रेंड्स में “एक्सट्रीम चैलेंज” और “लाइव स्टंट” शामिल हैं, जिन पर सरकार ने चेतावनी जारी की है। सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अगस्त 2025 में नए दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा है कि प्लेटफॉर्म्स को ऐसे कंटेंट तुरंत हटाने होंगे, जो जानलेवा हों या नाबालिगों को जोखिम में डालते हों। यह स्पष्ट करता है कि रील, स्टेटस और स्टोरी के पीछे केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जानलेवा अंधेरा भी है।
