India-Pakistan border tension: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को राष्ट्र को एक कड़ा संदेश देते हुए कहा कि भारत को हमेशा ‘युद्ध जैसी स्थिति’ के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने मई में पाकिस्तान के साथ हुए चार दिवसीय सैन्य संघर्ष ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का हवाला देते हुए कहा कि इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सीमाओं पर “कहीं भी, कभी भी कुछ भी हो सकता है।” एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, सिंह ने कहा कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को ‘कड़ा जवाब’ दिया था, लेकिन अब इस संघर्ष को केवल जीत के रूप में नहीं, बल्कि भविष्य की राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए सीखने और आगे की कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक ‘केस स्टडी’ के रूप में लेना चाहिए। (India-Pakistan border tension) उन्होंने साफ किया कि ऑपरेशन सिंदूर के कारण एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी, जहां युद्ध भी ‘हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा था।’
India-Pakistan border tension: स्वदेशी शक्ति का प्रदर्शन: प्रतिष्ठा में वृद्धि
रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि 7 से 10 मई के इस अभियान के दौरान स्वदेशी निर्मित सैन्य उपकरणों के प्रभावी उपयोग से क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है। सिंह ने कहा, “हालांकि हमने दृढ़ संकल्प के साथ जवाब दिया और हमारी सेनाएं देश की सीमाओं की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार हैं, फिर भी हमें आत्मचिंतन करते रहना होगा। (India-Pakistan border tension)” उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर एक केस स्टडी के रूप में काम करेगा, जिससे हम सीख सकें और अपना भविष्य तय कर सकें। उन्होंने जोर दिया कि वर्तमान वैश्विक अनिश्चितताएं प्रत्येक क्षेत्र का गहन मूल्यांकन करने की मांग करती हैं, और चुनौतियों से निपटने के लिए ‘स्वदेशीकरण’ ही एकमात्र रास्ता है।
बदलते वैश्विक परिदृश्य: सुरक्षा रणनीति का पुनर्निर्माण
राजनाथ सिंह ने विश्व व्यवस्था में आ रहे बदलावों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि स्थापित विश्व व्यवस्था कमजोर हो रही है और कई क्षेत्रों में संघर्ष क्षेत्र बढ़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में, “भारत के लिए अपनी सुरक्षा और रणनीति को नए सिरे से परिभाषित करना आवश्यक हो गया है।” सिंह ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुनिया ने आकाश मिसाइल प्रणाली, ब्रह्मोस, आकाशतीर वायु रक्षा नियंत्रण प्रणाली और अन्य स्वदेशी उपकरणों और प्लेटफार्मों की शक्ति देखी। (India-Pakistan border tension) उन्होंने इस ऑपरेशन की सफलता का श्रेय बहादुर सशस्त्र बलों के साथ-साथ उन ‘उद्योग योद्धाओं’ को भी दिया, जिन्होंने नवाचार, डिजाइन और विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति में काम किया।
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‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’: रक्षा विनिर्माण में क्रांति
रक्षा मंत्री ने भारतीय उद्योग को थलसेना, नौसेना और वायुसेना के साथ रक्षा के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि सरकार रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने और घरेलू पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए समान अवसर उपलब्ध करा रही है, और उद्योग को इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिए। (India-Pakistan border tension) उन्होंने कहा, “हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि रक्षा उपकरण न केवल देश में तैयार किए जाएं, बल्कि ‘मेड इन इंडिया, मेड फॉर द वर्ल्ड’ की भावना को मूर्त रूप देने वाले उपकरण बनाने के लिए एक वास्तविक विनिर्माण आधार स्थापित किया जाए।”
राजनाथ सिंह ने बताया कि 2014 से पहले भारत अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर था, लेकिन आज वह अपनी धरती पर ही रक्षा उपकरणों का निर्माण कर रहा है। (India-Pakistan border tension) उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि हमारा रक्षा उत्पादन, जो 2014 में केवल 46,000 करोड़ रुपये था, अब बढ़कर रिकॉर्ड 1.51 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें निजी क्षेत्र का योगदान 33,000 करोड़ रुपये है। रक्षा निर्यात पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जो निर्यात 10 साल पहले 1,000 करोड़ रुपये से भी कम था, वह अब लगभग 24,000 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। उन्होंने विश्वास जताया कि मार्च 2026 तक रक्षा निर्यात 30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।
‘हमारी मिट्टी, हमारा कवच’: स्वदेशीकरण को बढ़ाने का आह्वान
स्वदेशीकरण को और बढ़ाने के लिए, सिंह ने उद्योग से आग्रह किया कि वे केवल सम्पूर्ण प्लेटफॉर्म पर ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत उप-प्रणालियों और घटकों के स्वदेशी विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करें। (India-Pakistan border tension) उन्होंने कहा कि विदेशों से प्रमुख उपकरणों की खरीद से रखरखाव और जीवन-चक्र लागत के मामले में भारत के संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। (India-Pakistan border tension) रक्षा मंत्री ने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ‘हमारी मिट्टी, हमारा कवच’ हमारी पहली पसंद बने।” उन्होंने स्पष्ट किया कि उद्देश्य केवल भारत में संयोजन (Assembly) करना नहीं होना चाहिए, बल्कि देश के भीतर प्रौद्योगिकी आधारित विनिर्माण विकसित करना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रभावी हो और हमारे स्वदेशी उद्योगों को सशक्त बनाने का साधन भी बने।
