
India Nepal Support: भारत ने शनिवार को नेपाल में पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नेतृत्व में बनी नई अंतरिम सरकार का स्वागत किया। शुक्रवार रात सुशीला कार्की ने नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। विदेश मंत्रालय (MEA) ने एक बयान में कहा, “हम सुशीला कार्की के नेतृत्व में नेपाल में बनाई गई नई अंतरिम सरकार का स्वागत करते हैं। (India Nepal Support) हमें उम्मीद है कि इससे नेपाल में शांति और स्थिरता बढ़ेगी।” बयान में यह भी कहा गया कि भारत, एक नजदीकी और लोकतांत्रिक देश, हमेशा नेपाल के साथ मिलकर दोनों देशों के लोगों की भलाई और समृद्धि के लिए काम करेगा।
India Nepal Support: Gen-Z प्रदर्शनकारियों की पांच शर्तें
केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद लंबे समय तक चली राजनीतिक अस्थिरता के बीच, 73 वर्षीय सुशीला कार्की ने शुक्रवार रात नेपाल के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने काठमांडू स्थित राष्ट्रपति भवन में सुशीला कार्की को शपथ दिलाई। इस अवसर पर नेपाल के मुख्य न्यायाधीश, वरिष्ठ अधिकारी, सुरक्षा प्रमुख और राजनयिकों की मौजूदगी रही। (India Nepal Support) राष्ट्रपति पौडेल ने कहा कि सुशीला कार्की के नेतृत्व वाली सरकार को 6 महीने के भीतर नए संसदीय चुनाव कराने का अधिकार प्राप्त है।
सुशीला कार्की को मिली अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी
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सोशल मीडिया पर लगाए गए विवादास्पद प्रतिबंधों और देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों के कारण केपी ओली को अपना पद छोड़ना पड़ा था। तीन दिन तक चले हिंसक आंदोलनों के बाद, 73 साल की सुशीला कार्की को नेपाल की अंतरिम सरकार का प्रमुख चुन लिया गया। (India Nepal Support) यह एक दिलचस्प मोड़ है कि जिस सरकार ने पहले सुशीला कार्की को महाभियोग के जरिए उनके पद से हटा दिया था, आज वही सरकार पलट गई और उन्हें अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी दी गई। शुक्रवार शाम करीब 7 बजे, सुशीला कार्की राष्ट्रपति भवन पहुंची, और उनके साथ ‘हामी नेपाल’ NGO के सदस्य भी थे, जिन्होंने इस Gen Z आंदोलन का नेतृत्व किया था।
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सुशीला कार्की के सामने रखी गई शर्तें
हामी नेपाल NGO ने सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी सौंपने से पहले कुछ शर्तें भी रखीं। इनमें पहली शर्त थी कि मौजूदा संघीय संसद को भंग किया जाए, और यह शर्त मान ली गई। (India Nepal Support) इसका मतलब यह है कि 2022 के संसदीय चुनावों में जो राजनीतिक दल जितनी सीटें जीते थे, अब वह संसद भंग हो जाएगी। दूसरी शर्त यह थी कि 8 और 9 सितंबर के आंदोलन में जो युवा प्रदर्शनकारी मारे गए थे और जिनके खिलाफ “शूट एट साइट” के आदेश दिए गए थे, उनके मामले की निष्पक्ष जांच एक न्यायिक आयोग से करवाई जाए।