
China supports Russia: जब दुनिया यूक्रेन-रूस युद्ध को बस दो देशों की लड़ाई समझ रही थी, तभी एक तीसरी ताकत पर्दे के पीछे से पूरा युद्ध मोर्चा चला रही थी—चीन। जी हां, वो चीन जो तीन साल से दुनिया के सामने खुद को “तटस्थ” दिखा रहा था, वो दरअसल रूस की हार से इतना डर रहा है कि अब खुलकर धमकी देने लगा है। (China supports Russia) चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने यूरोपीय यूनियन की मीटिंग में ऐसा कह दिया जिसने यूरोप और अमेरिका दोनों को हिलाकर रख दिया। उन्होंने साफ-साफ कहा—”हम रूस को यूक्रेन युद्ध में हारने नहीं देंगे, क्योंकि अगर रूस हारा… तो अमेरिका सीधे चीन पर टूट पड़ेगा। “
China supports Russia: कूटनीति की आड़ में युद्ध की भूख
बीजिंग की यह सबसे खुली स्वीकारोक्ति थी कि यूक्रेन की लड़ाई सिर्फ रूस की नहीं, बल्कि चीन की भी रणनीतिक जरूरत बन चुकी है। (China supports Russia) अब तक खुद को ‘तटस्थ’ कहने वाला चीन, अब युद्ध का गुप्त मोर्चा बन चुका है—और अगर रूस हारता है, तो चीन के सपनों का महल चकनाचूर हो जाएगा। (China supports Russia) यूरोपीय अधिकारियों को यह बयान इतनी तीव्रता से चौंकाने वाला लगा कि एक शीर्ष अधिकारी ने बैठक के तुरंत बाद कहा—“अब ये युद्ध सिर्फ यूक्रेन का नहीं रहा, अब ये युद्ध चीन के लिए अमेरिका से अपनी हिफाजत का तरीका बन चुका है।”
अमेरिका से डर और ताइवान की भूख
Also Read –Raj Thackeray News: राज ठाकरे को ‘खुला छोड़ना खतरनाक, इस नेता ने कर दी ऐसी कार्रवाई की मंग
चीन को सबसे बड़ा डर इस बात का है कि रूस की हार के बाद अमेरिका अपना पूरा फोकस ताइवान पर कर देगा। चीन ताइवान को कब्जे में लेने के लिए वर्षों से योजनाएं बना रहा है, लेकिन वह जानता है कि अमेरिका की निगाहें अगर पूरी तरह बीजिंग की तरफ घूम जाएं, तो उसकी हर चाल नाकाम हो सकती है। (China supports Russia) इसलिए चीन को इस युद्ध की ‘आग’ जलती रहनी चाहिए, ताकि अमेरिका यूरोप में फंसा रहे और बीजिंग के मंसूबे ताइवान में पनपते रहें।
‘तटस्थता’ की आड़ में गोला-बारूद की होली
आपको जानकर झटका लगेगा कि पिछले तीन सालों में चीन ने रूस को जितना मदद दी है, वह किसी “तटस्थ देश” की भूमिका को शर्मसार कर देती है। कुछ आंकड़े तो सीधे गला घोंटने जैसे हैं:
- Advertisement -
2023 में चीन और रूस का आपसी व्यापार 240 अरब डॉलर पार कर गया।
चीनी ऑटो पार्ट्स, मिसाइल तकनीक, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और ड्रोन इंजन रूस को सप्लाई किए जा रहे हैं।
70% से ज़्यादा मशीन टूल्स और 90% माइक्रोचिप्स रूस चीन से आयात करता है।
हर महीने 300 मिलियन डॉलर से ज़्यादा कीमत की “दोहरे इस्तेमाल वाली” टेक्नोलॉजी रूस को जाती है—जिसे युद्ध और उद्योग दोनों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
Also Read –Mossad attack on Iran new president: “मुझे मारना चाहता था मोसाद!” – ईरान के नए राष्ट्रपति का चौंकाने वाला दावा, कहा- मीटिंग रूम पर बरसाए गए बम
यहाँ तक कि चीन ने रूस को नाइट्रोसेल्यूलोज (जो हथियारों के प्रणोदक में इस्तेमाल होता है) और सैटेलाइट कम्युनिकेशन तकनीक भी दी है। क्या कोई तटस्थ देश ये सब करता है?
रूस हार गया तो बीजिंग की लंका लग जाएगी
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन पहले ही आगाह कर चुके हैं कि चीन की मदद के बिना रूस युद्ध में एक महीने भी नहीं टिक पाएगा। (China supports Russia) लेकिन अब चीन सिर्फ ‘सहायक’ नहीं, बल्कि रूस की रीढ़ बन गया है। चीन ये जानता है कि अगर रूस टूटता है, तो अगले टारगेट पर वह खुद होगा। यही वजह है कि वांग यी ने यूरोपीय मंत्रियों को चेताया—”हमें युद्ध में रूस की हार मंज़ूर नहीं।” यह कूटनीतिक भाषा में नहीं, बल्कि भविष्य की जंग का अल्टीमेटम है।
अमेरिका के लिए सोने का मौका… और चीन के लिए डरावनी रात
रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका को अप्रत्याशित रणनीतिक जीत मिली है:
स्वीडन और फिनलैंड जैसे तटस्थ देश NATO में शामिल हो गए।
यूरोप की डिफेंस बजट पहली बार WWII के बाद इतने ऊंचे स्तर पर पहुंचे हैं।
अमेरिका को रूस के खिलाफ असली युद्ध की प्रयोगशाला मिल गई—बिना किसी अमेरिकी सैनिक को भेजे।
वहीं चीन देख रहा है कि उसका पुराना ‘दोस्त’ रूस अमेरिका के शिकंजे में कमज़ोर होता जा रहा है। (China supports Russia) और इससे जो वैक्यूम पैदा होगा, उसे भरने वॉशिंगटन बीजिंग की तरफ रुख करेगा। यही डर बीजिंग की नींद उड़ाए हुए है।
डेंग शियाओपिंग की नीति अब टूट चुकी है
एक वक्त था जब चीन “अपनी ताकत छिपाओ, समय बिताओ” की नीति पर चलता था। लेकिन अब वह ‘तटस्थ’ नहीं रह गया। अब चीन खुलकर रूस के साथ खड़ा है, उसके लिए हथियार बना रहा है, उसके सैन्य-तंत्र को चला रहा है और अपने अस्तित्व की रक्षा युद्ध में रूस की जीत से जोड़ चुका है। (China supports Russia) अब ये जंग सिर्फ यूक्रेन की नहीं, न ही सिर्फ रूस की… ये युद्ध है—चीन के सपनों, ताइवान की भूख और अमेरिका के पलटवार का।
बड़ी बात ये है… क्या ट्रंप की कोशिशें फेल हो जाएंगी?
डोनाल्ड ट्रंप ने वादा किया है कि वो ही रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करवाएंगे। (China supports Russia) लेकिन क्या वो कर पाएंगे? क्योंकि शांति की चाबी अब मॉस्को या कीव में नहीं, बल्कि बीजिंग की जेब में है।
चीन चाहता है कि यह युद्ध चलता रहे, ताकि:
अमेरिका यूरोप में उलझा रहे,
रूस कमजोर होते हुए भी चीन का वफादार बना रहे,
और बीजिंग ताइवान पर अपना शिकंजा कस सके।
दुनिया किस ओर जा रही है?
यूक्रेन में चल रही यह जंग अब दो राष्ट्रों की सीमाओं की नहीं रह गई है। (China supports Russia) ये तीन महाशक्तियों के वर्चस्व की लड़ाई बन चुकी है—रूस, अमेरिका और चीन। इस जंग में कोई भी पक्ष हारता है, तो पूरी दुनिया के संतुलन को हिला सकता है।
अगर रूस हारा—चीन की बारी आएगी।
अगर यूक्रेन थमा—अमेरिका और NATO की साख गिरेगी।
और अगर चीन खुलकर मैदान में कूद पड़ा—तीसरे विश्व युद्ध का पहला धमाका यहीं से सुनाई देगा।
इसलिए अब सवाल यह नहीं कि यूक्रेन में कौन जीतेगा… बल्कि यह है कि बीजिंग की यह ‘शांत चेहरों के पीछे छुपी भस्मासुरी रणनीति’ कब वैश्विक शांति को राख कर देगी?